कलियुगी जीवों को बरबस ब्रजरस में सराबोर करने वाले भक्तियोगरसावतार अकारण करुण जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने जीव-कल्याणार्थ भगीरथ प्रयास किया। आपने देश-विदेश के कोने-कोने में स्वयं जाकर भगवद्बहिर्मुख जीवों को श्रीकृष्ण सन्मुखता का दिव्य-सन्देश देकर अनन्त दिव्य नित्यानन्द का मार्ग प्रशस्त किया।
चैतन्य महाप्रभु ने जिस रस को प्रवाहित किया था, अब पुन: श्री कृपालु महाप्रभु उसी दुर्लभ रस को कलियुगी जीवों को पिला रहे हैं। नित्य नवीन, सरल सरस मधुरातिमधुर रचनाओं के द्वारा भक्ति सम्बन्धी शास्त्रीय ज्ञान नवीन-नवीन प्रकार से निरूपित करके मन्द बुद्धि वालों के मस्तिष्क में भी बैठाना उनके व्यक्तित्व की बहुत बड़ी विशेषता है। श्री नवद्वीप धाम में श्री महाराज जी ने -
हरि अनुराग हो या गोविन्द राधे।
जग विराग हो हो मन से बता दे॥
इस स्वरचित दोहे की व्याख्या करते हुये बताया कि वास्तविक भक्ति किस प्रकार की जाय जिससे अन्त:करण शुद्धि होने पर दिव्य भक्ति प्राप्त करके जीव श्रीकृष्ण की नित्य सेवा प्राप्त कर सके।
नवद्वीप धाम में अनमोल रत्न बिना मोल के मिल गया। लूटने वालों ने खूब लूटा। आप भी ‘भगवद्-भक्ति’ नाम की इस पुस्तक के द्वारा इस अमूल्य धन को लूट लीजिये।
प्रवचन यथार्थ रूप में ही प्रस्तुत किये जा रहे हैं। अंग्रेजी के शब्दों का भी हिन्दी अनुवाद नहीं किया गया है, इस भावना से कि गुरुदेव के श्री मुख से नि:सृत खजाना मौलिक रूप में ही संजोकर रखा जाय।
Bhagavad Bhakti - Hindiप्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
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कलियुगी जीवों को बरबस ब्रजरस में सराबोर करने वाले भक्तियोगरसावतार अकारण करुण जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने जीव-कल्याणार्थ भगीरथ प्रयास किया। आपने देश-विदेश के कोने-कोने में स्वयं जाकर भगवद्बहिर्मुख जीवों को श्रीकृष्ण सन्मुखता का दिव्य-सन्देश देकर अनन्त दिव्य नित्यानन्द का मार्ग प्रशस्त किया।
चैतन्य महाप्रभु ने जिस रस को प्रवाहित किया था, अब पुन: श्री कृपालु महाप्रभु उसी दुर्लभ रस को कलियुगी जीवों को पिला रहे हैं। नित्य नवीन, सरल सरस मधुरातिमधुर रचनाओं के द्वारा भक्ति सम्बन्धी शास्त्रीय ज्ञान नवीन-नवीन प्रकार से निरूपित करके मन्द बुद्धि वालों के मस्तिष्क में भी बैठाना उनके व्यक्तित्व की बहुत बड़ी विशेषता है। श्री नवद्वीप धाम में श्री महाराज जी ने -
हरि अनुराग हो या गोविन्द राधे।
जग विराग हो हो मन से बता दे॥
इस स्वरचित दोहे की व्याख्या करते हुये बताया कि वास्तविक भक्ति किस प्रकार की जाय जिससे अन्त:करण शुद्धि होने पर दिव्य भक्ति प्राप्त करके जीव श्रीकृष्ण की नित्य सेवा प्राप्त कर सके।
नवद्वीप धाम में अनमोल रत्न बिना मोल के मिल गया। लूटने वालों ने खूब लूटा। आप भी ‘भगवद्-भक्ति’ नाम की इस पुस्तक के द्वारा इस अमूल्य धन को लूट लीजिये।
प्रवचन यथार्थ रूप में ही प्रस्तुत किये जा रहे हैं। अंग्रेजी के शब्दों का भी हिन्दी अनुवाद नहीं किया गया है, इस भावना से कि गुरुदेव के श्री मुख से नि:सृत खजाना मौलिक रूप में ही संजोकर रखा जाय।
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | सिद्धांत |
विषयवस्तु | जीवन परिवर्तनकारी, तनाव और डिप्रेशन रहित जीवन, छोटी किताब |
फॉर्मेट | पेपरबैक |
वर्गीकरण | प्रवचन |
लेखक | जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
पृष्ठों की संख्या | 88 |
वजन (ग्राम) | 122 |
आकार | 14 सेमी X 22 सेमी X 0.8 सेमी |
आई.एस.बी.एन. | 9789380661650 |