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9789390373239 61f0217ee7ee1e2c42ec2992 भगवद् गीता ज्ञान - शरणागति - हिन्दी https://www.jkpliterature.org.in/s/61949a48ba23e5af80a5cfdd/61f02d11f9467244d050f203/1gita-gyan-series-5.jpg

कर्म से श्रेष्ठ ज्ञान है ज्ञान से श्रेष्ठ भक्ति और भक्ति की अंतिम अवस्था उसका जो मूल केन्द्र है वह शरणागति है। शरणागति के बिना भक्ति नहीं, भक्ति के बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान के बिना कर्म नहीं। तो आधार है शरणागति । इसके बिना काम नहीं चलेगा गीता का प्रारम्भ, गीता का मध्य, गीता का एन्ड सब श्रीकृष्ण शरणागति पर ही निर्भर है।

गीता का प्रारम्भ मध्य और अन्त यही है कि केवल भगवान् की ही शरण में जाना है। धर्म अधर्म सब को छोड़कर केवल श्री कृष्ण शरणागति ग्रहण करके उनका ही निरन्तर चिन्तन, स्मरण यही सर्वश्रेष्ठ भक्ति है। अनादि काल से हमने यही गलती की है मन को संसार में रखकर भगवान् का भजन किया।

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने गीता के इस सिद्धान्त का प्रतिपादन अपने अधिकतर प्रवचनों में और ग्रन्थों में भी किया है। यहाँ उनके प्रवचनों के कुछ अंश संकलित किये गये हैं। हर साधक के लिए यह सिद्धान्त समझना परमावश्यक है कि श्रीकृष्ण की अनन्य शरणागति से ही लक्ष्य की प्राप्ति होगी।

कृष्ण कृपा बिनु जाय नहीं माया अति बलवान। शरणागत पर हो कृपा यह गीता को ज्ञान।

Bhagavad Gita Jnana Sharanagati Vol 4- Hindi
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भगवद् गीता ज्ञान - शरणागति - हिन्दी

भगवद् गीता ज्ञान - शरणागति - हिन्दी

शरणागति का अंतरंग रहस्य
भाषा - हिन्दी

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विशेषताएं
  • शरणागति के संदर्भ में गीता क्या कहती है?
  • भगवान् के शरणागत होने का बड़ा आसान उपाय।
  • गीता की वो बात जो शायद आप नहीं जानते।
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प्रकारविक्रेतामूल्यमात्रा

विवरण

कर्म से श्रेष्ठ ज्ञान है ज्ञान से श्रेष्ठ भक्ति और भक्ति की अंतिम अवस्था उसका जो मूल केन्द्र है वह शरणागति है। शरणागति के बिना भक्ति नहीं, भक्ति के बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान के बिना कर्म नहीं। तो आधार है शरणागति । इसके बिना काम नहीं चलेगा गीता का प्रारम्भ, गीता का मध्य, गीता का एन्ड सब श्रीकृष्ण शरणागति पर ही निर्भर है।

गीता का प्रारम्भ मध्य और अन्त यही है कि केवल भगवान् की ही शरण में जाना है। धर्म अधर्म सब को छोड़कर केवल श्री कृष्ण शरणागति ग्रहण करके उनका ही निरन्तर चिन्तन, स्मरण यही सर्वश्रेष्ठ भक्ति है। अनादि काल से हमने यही गलती की है मन को संसार में रखकर भगवान् का भजन किया।

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने गीता के इस सिद्धान्त का प्रतिपादन अपने अधिकतर प्रवचनों में और ग्रन्थों में भी किया है। यहाँ उनके प्रवचनों के कुछ अंश संकलित किये गये हैं। हर साधक के लिए यह सिद्धान्त समझना परमावश्यक है कि श्रीकृष्ण की अनन्य शरणागति से ही लक्ष्य की प्राप्ति होगी।

कृष्ण कृपा बिनु जाय नहीं माया अति बलवान। शरणागत पर हो कृपा यह गीता को ज्ञान।

विशेष विवरण

भाषाहिन्दी
शैली / रचना-पद्धतिसिद्धांत
विषयवस्तुतत्वज्ञान, गीता ज्ञान
फॉर्मेटपेपरबैक
वर्गीकरणसंकलन
लेखकजगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
प्रकाशकराधा गोविंद समिति
पृष्ठों की संख्या97
वजन (ग्राम)90
आकार18 सेमी X 12 सेमी X 0.8 सेमी
आई.एस.बी.एन.9789390373239

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