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अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानांजन शलाकया।

चक्षुरु न्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नम:॥

 

पचासवें जगद्गुरु दिवस का हार्दिक अभिनन्दन।

निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य भक्ति योगरसावतार जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम।

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज पंचम समन्वयवादी जगद्गुरु हैं। पूर्ववर्ती चारों जगद्गुरु ओं एवं अन्य आचार्यों के सिद्धान्तों का विलक्षण समन्वय करके भक्ति योग का प्राधान्य सिद्ध करने वाले, आचार्य श्री कलिमलग्रसित अधम जीवों को बरबस ब्रजरस में डुबो रहे हैं। सभी जाति सभी सम्प्रदायों के लोगों का एकीकरण करके दिव्य प्रेम का सन्देश जन जन तक पहुँचाने के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर रहे हैं। प्रस्तुत स्मारिका भगवत्तत्व में उनके सिद्धान्तों का निरूपण करने का प्रयास किया गया है। यद्यपि उनके द्वारा प्रकट ज्ञान समुद्रवत ही है तथापि इस पुस्तक में संक्षिप्त वर्णन है कि किस प्रकार से आचार्य श्री सभी आचार्यों का सम्मान करते हुये श्री कृष्ण भक्ति द्वारा विश्व बन्धुत्व की भावना दृढ़ कर रहे हैं।

कलि के प्रधान धर्म श्री कृष्ण संकीर्तन की शिक्षा देकर जीवों का उद्धार करने वाले हे करुणावतार ! जगद्गुरु कृपालु आपको कोटि-कोटि प्रणाम।

हम जैसे कृतघ्नी, पामर, पाषाण हृदयी जीवों को भी श्री कृष्ण भक्ति मार्ग पर अग्रसर करने वाले भक्तियोगरसावतार जगद्गुरु कृपालु आपको कोटि-कोटि प्रणाम! हे पतितपावन! दीनबन्धु! कृपासिन्धु! जीवों के प्रति आपकी अहैतुकी कृपा को कोटि-कोटि प्रणाम!!!!

Bhagavat-tattva - Hindi
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भगवत्तत्व - हिन्दी

भगवत्तत्व - हिन्दी

जगद्गुरु श्री कृपालु की संस्कृत उपाधियाँ और उनकी मूल शिक्षाएँ
भाषा - हिन्दी

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विशेषताएं
  • जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज को दी गई पदवी की विस्तृत व्याख्या।
  • भारत की महानविभूतियों द्वारा श्री महाराज जी के संदर्भ में प्रकट किये गये उद्गार।
  • श्री महाराज जी द्वारा संस्थापित जगद्गुरु कृपालु परिषद् द्वारा किये गये सामाजिक कार्यों का वर्णन।
  • श्री महाराज जी द्वारा रचित समस्त अद्वितीय ग्रंथों का वर्णन।
  • जगद्गुरूत्तम जयंती का महत्व एवं गुरु कृपा का वर्णन।
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प्रकारविक्रेतामूल्यमात्रा

विवरण

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानांजन शलाकया।

चक्षुरु न्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नम:॥

 

पचासवें जगद्गुरु दिवस का हार्दिक अभिनन्दन।

निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य भक्ति योगरसावतार जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम।

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज पंचम समन्वयवादी जगद्गुरु हैं। पूर्ववर्ती चारों जगद्गुरु ओं एवं अन्य आचार्यों के सिद्धान्तों का विलक्षण समन्वय करके भक्ति योग का प्राधान्य सिद्ध करने वाले, आचार्य श्री कलिमलग्रसित अधम जीवों को बरबस ब्रजरस में डुबो रहे हैं। सभी जाति सभी सम्प्रदायों के लोगों का एकीकरण करके दिव्य प्रेम का सन्देश जन जन तक पहुँचाने के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर रहे हैं। प्रस्तुत स्मारिका भगवत्तत्व में उनके सिद्धान्तों का निरूपण करने का प्रयास किया गया है। यद्यपि उनके द्वारा प्रकट ज्ञान समुद्रवत ही है तथापि इस पुस्तक में संक्षिप्त वर्णन है कि किस प्रकार से आचार्य श्री सभी आचार्यों का सम्मान करते हुये श्री कृष्ण भक्ति द्वारा विश्व बन्धुत्व की भावना दृढ़ कर रहे हैं।

कलि के प्रधान धर्म श्री कृष्ण संकीर्तन की शिक्षा देकर जीवों का उद्धार करने वाले हे करुणावतार ! जगद्गुरु कृपालु आपको कोटि-कोटि प्रणाम।

हम जैसे कृतघ्नी, पामर, पाषाण हृदयी जीवों को भी श्री कृष्ण भक्ति मार्ग पर अग्रसर करने वाले भक्तियोगरसावतार जगद्गुरु कृपालु आपको कोटि-कोटि प्रणाम! हे पतितपावन! दीनबन्धु! कृपासिन्धु! जीवों के प्रति आपकी अहैतुकी कृपा को कोटि-कोटि प्रणाम!!!!

विशेष विवरण

भाषाहिन्दी
शैली / रचना-पद्धतिस्मारिका
फॉर्मेटकॉफी टेबल बुक
वर्गीकरणविशेष
लेखकराधा गोविंद समिति
प्रकाशकराधा गोविंद समिति
पृष्ठों की संख्या68
वजन (ग्राम)378
आकार22 सेमी X 30 सेमी X 0.5 सेमी
आई.एस.बी.एन.9789380661582

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