श्री राधाकृष्ण सम्बन्धी भक्ति मार्गीय सिद्धान्तों से युक्त 100 दोहों के रूप में ‘भक्ति शतक’ एक अनुपम अद्वितीय ग्रन्थ है।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने गूढ़तम शास्त्रीय सिद्धान्तों को भी इतनी सरलता से प्रकट किया है कि जनसाधारण भी हृदयंगम कर सकता है। दोहों के साथ साथ करुणा का परिचय दिया है अन्यथा दोहों में अन्तर्निहित गूढ़ रहस्यों को समझना लौकिक बुद्धि से सर्वथा अगम्य होता। अब भावुक जिज्ञासु पाठक पूर्ण रूपेण लाभान्वित हो सकते हैं। ग्रन्थ पढ़ने के बाद तर्क कुतर्क संशय सब समाप्त हो जाते हैं तथा बुद्धि इस तथ्य को स्वीकार कर लेती है कि व्यर्थ के वाद विवाद में पड़कर समय नष्ट करने से कोई लाभ नहीं है क्योंकि शास्त्रों वेदों का इतना अम्बार है कि पन्ने पलटते पलटते ही पूरी आयु बीत जायेगी।
अनन्त सिद्धान्हों का यही सार है कि सेव्य श्रीर कृष्ण सेवा भी भावना निरन्तर बढ़ती जाय। यही अन्तिम तत्वज्ञान है।
सौ बातन की बात इक, धरु मुरलीधर ध्यान।
बढ़वहु सेवा वासना यह सौ ज्ञानन ज्ञान।
(भक्ति शतक)
Bhakti Shatak - Pocket Size - Hindi - Ebookप्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
---|
श्री राधाकृष्ण सम्बन्धी भक्ति मार्गीय सिद्धान्तों से युक्त 100 दोहों के रूप में ‘भक्ति शतक’ एक अनुपम अद्वितीय ग्रन्थ है।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने गूढ़तम शास्त्रीय सिद्धान्तों को भी इतनी सरलता से प्रकट किया है कि जनसाधारण भी हृदयंगम कर सकता है। दोहों के साथ साथ करुणा का परिचय दिया है अन्यथा दोहों में अन्तर्निहित गूढ़ रहस्यों को समझना लौकिक बुद्धि से सर्वथा अगम्य होता। अब भावुक जिज्ञासु पाठक पूर्ण रूपेण लाभान्वित हो सकते हैं। ग्रन्थ पढ़ने के बाद तर्क कुतर्क संशय सब समाप्त हो जाते हैं तथा बुद्धि इस तथ्य को स्वीकार कर लेती है कि व्यर्थ के वाद विवाद में पड़कर समय नष्ट करने से कोई लाभ नहीं है क्योंकि शास्त्रों वेदों का इतना अम्बार है कि पन्ने पलटते पलटते ही पूरी आयु बीत जायेगी।
अनन्त सिद्धान्हों का यही सार है कि सेव्य श्रीर कृष्ण सेवा भी भावना निरन्तर बढ़ती जाय। यही अन्तिम तत्वज्ञान है।
सौ बातन की बात इक, धरु मुरलीधर ध्यान।
बढ़वहु सेवा वासना यह सौ ज्ञानन ज्ञान।
(भक्ति शतक)
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | संकीर्तन, दोहे |
फॉर्मेट | ईबुक |
वर्गीकरण | प्रमुख रचना |
लेखक | जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
आई.एस.बी.एन. | 9788194589631 |