भक्ति का महल दीनता एवं नम्रता की नींव पर निर्मित होता है, और ये 105 पद इसकी सुंदरता और सजीवता का वर्णन करते हैं। ये पद इस सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक गुण को विकसित करने में हमारा मार्गदर्शन करते हैं। भक्ति का अभ्यास करते समय साधक को यह स्वीकार करना चाहिए कि उसके भीतर अहंकार और नाकारात्मकता भरपूर रूप से है और इन्हें दूर करने के लिए सहनशीलता, दीनता, दूसरों के प्रति सम्मान आदि जैसे दिव्य गुणों को अपनाने का निरंतर प्रयास करना चाहिए। भक्ति के इस महान संग्रह / महान निधि, 'प्रेम रस मदिरा' का यह चौथा अध्याय है। 'प्रेम रस मदिरा' के दिव्य अद्वितीय 1008 भक्ति से परिपूर्ण पद वेदों, पुराणों, उपनिषदों आदि के सिद्धांतों पर आधारित हैं।