भगवान श्री कृष्ण तरसते थे कि ब्रज की ये अनपढ़ गोपियाँ उन्हें चोर, जार आदि गालियाँ दें। ये सब सुनने में रस मिलता था उन्हें। इन गोपियों की कक्षा सभी संतों में सर्वोच्च है। ब्रह्मा, शंकर और परमहंस लोग भी भगवान से विनती करते हैं कि उन्हें वृंदावन में लता, पेड़, पत्ते आदि बना दें ताकि उन्हें इन गोपियों के पावन चरणों की रज प्राप्त हो सके।
- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
प्रेम में अनेक कक्षायें हैं। प्रेम की सर्वोच्च कक्षा का नाम गोपी-प्रेम है। उसके आगे केवल राधा-कृष्ण का प्रेम है।
सच्चिदानन्द भगवान् श्री कृष्ण की अनन्तानन्त लीलाओं में ब्रज की लीलाओं का माधुर्य सर्वाधिक विलक्षण है जहाँ प्रेम के लालित्य के अतिरिक्त और कुछ है ही नहीं। उनमें भी ब्रजगोपियों के प्रेम की कथा तो सर्वथा अनिर्वचनीय है। उनके प्रेम की गरिमा व माधुर्य की तो कोई मन से कल्पना भी नहीं कर सकता फिर चाहे वह ब्रह्मा, शंकरादिक भी क्यों न हों।
निष्काम प्रेम की आचार्या हैं गोपियाँ। उनका जीवन केवल श्री कृष्ण के सुख के लिये ही समर्पित था। अपने सुख की लेश मात्र भी कामना नहीं थी।
उनके इस प्रेम के आधीन होकर श्री कृष्ण अपनी भगवत्ता भूल जाते हैं। विभिन्न प्रकार की दिव्य लीलायें जो उनके साथ उन्होंने की वह रसिकों की साधना का आधार है। उन लीलाओं का चिन्तन, मनन, स्मरण ही उनकी साधना का प्राण है।
प्राकृत बुद्धि से उन लीलाओं को नहीं समझा जा सकता है। विशुद्ध अन्तःकरण द्वारा ही दिव्य लीलाओं के रहस्य को समझकर उसका रसास्वादन किया जा सकता है।
प्रस्तुत पुस्तक में जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा गोपी प्रेम पर दिये गये प्रवचनों को संकलित किया गया है, जिससे गोपी प्रेम का कुछ दिग्दर्शन पाठकों को प्राप्त हो सकता है।
Gopi Prem Hindiप्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
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भगवान श्री कृष्ण तरसते थे कि ब्रज की ये अनपढ़ गोपियाँ उन्हें चोर, जार आदि गालियाँ दें। ये सब सुनने में रस मिलता था उन्हें। इन गोपियों की कक्षा सभी संतों में सर्वोच्च है। ब्रह्मा, शंकर और परमहंस लोग भी भगवान से विनती करते हैं कि उन्हें वृंदावन में लता, पेड़, पत्ते आदि बना दें ताकि उन्हें इन गोपियों के पावन चरणों की रज प्राप्त हो सके।
- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
प्रेम में अनेक कक्षायें हैं। प्रेम की सर्वोच्च कक्षा का नाम गोपी-प्रेम है। उसके आगे केवल राधा-कृष्ण का प्रेम है।
सच्चिदानन्द भगवान् श्री कृष्ण की अनन्तानन्त लीलाओं में ब्रज की लीलाओं का माधुर्य सर्वाधिक विलक्षण है जहाँ प्रेम के लालित्य के अतिरिक्त और कुछ है ही नहीं। उनमें भी ब्रजगोपियों के प्रेम की कथा तो सर्वथा अनिर्वचनीय है। उनके प्रेम की गरिमा व माधुर्य की तो कोई मन से कल्पना भी नहीं कर सकता फिर चाहे वह ब्रह्मा, शंकरादिक भी क्यों न हों।
निष्काम प्रेम की आचार्या हैं गोपियाँ। उनका जीवन केवल श्री कृष्ण के सुख के लिये ही समर्पित था। अपने सुख की लेश मात्र भी कामना नहीं थी।
उनके इस प्रेम के आधीन होकर श्री कृष्ण अपनी भगवत्ता भूल जाते हैं। विभिन्न प्रकार की दिव्य लीलायें जो उनके साथ उन्होंने की वह रसिकों की साधना का आधार है। उन लीलाओं का चिन्तन, मनन, स्मरण ही उनकी साधना का प्राण है।
प्राकृत बुद्धि से उन लीलाओं को नहीं समझा जा सकता है। विशुद्ध अन्तःकरण द्वारा ही दिव्य लीलाओं के रहस्य को समझकर उसका रसास्वादन किया जा सकता है।
प्रस्तुत पुस्तक में जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा गोपी प्रेम पर दिये गये प्रवचनों को संकलित किया गया है, जिससे गोपी प्रेम का कुछ दिग्दर्शन पाठकों को प्राप्त हो सकता है।
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | सिद्धांत |
फॉर्मेट | पेपरबैक |
लेखक | जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
आकार | 21सेमी X 14सेमी X 0.7सेमी |
वजन (ग्राम) | 130 |