वेद शास्त्र सभी एक स्वर से उद्घोषित करते हैं कि भक्ति करने से ही भगवान् मिलेगा। भगवत्प्राप्ति कहो, भगवद् ज्ञान कहो, भगवत्सेवा कहो भक्ति से ही मिलेगी। अब प्रश्न हुआ भगवान् की भक्ति की जाय या गुरु की। भगवान् से डायरैक्ट कान्टैक्ट नहीं हो सकता। भगवान् स्वयं कहते हैं जो मेरे भक्त है वो वास्तव में मुझे उतने प्रिय नहीं है जितने मेरे भक्त के भक्त।
वेदव्यास कहते हैं-
ये मे भक्ता हि हे पार्थ न मे भक्तास्तु ते जना:।
मद्भक्तस्य ये भक्तास्ते मे भक्ततमा मता:॥
श्वेताश्वतरोपनिषत् में तो स्पष्ट ही लिखा है जैसी भक्ति भगवान् में हो वैसी ही गुरु में हो। अतः शास्त्र वेदसम्मत निर्विवाद सिद्ध सिद्धान्त है कि श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष की भक्ति द्वारा जीव अपने परम चरम लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। इसी सिद्धान्त का प्रतिपादन श्री आचार्य श्री ने अनेक जगह किया है। यह अवश्य ध्यान रहे कि दम्भी गुरु से सावधान रहना है।
प्रस्तुत पुस्तक में उनके कुछ प्रवचनों के अंश संकलित किये गये हैं। पूर्णतया प्रयास किया गया है कि आचार्य श्री की दिव्य वाणी को यथार्थ रूप में ही प्रस्तुत किया जाय। अंग्रेजी भाषा के शब्द भी वैसे ही लिखे गये हैं जैसे उन्होंने बोले हैं।
Guru Bhakti - Hindiप्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
---|
वेद शास्त्र सभी एक स्वर से उद्घोषित करते हैं कि भक्ति करने से ही भगवान् मिलेगा। भगवत्प्राप्ति कहो, भगवद् ज्ञान कहो, भगवत्सेवा कहो भक्ति से ही मिलेगी। अब प्रश्न हुआ भगवान् की भक्ति की जाय या गुरु की। भगवान् से डायरैक्ट कान्टैक्ट नहीं हो सकता। भगवान् स्वयं कहते हैं जो मेरे भक्त है वो वास्तव में मुझे उतने प्रिय नहीं है जितने मेरे भक्त के भक्त।
वेदव्यास कहते हैं-
ये मे भक्ता हि हे पार्थ न मे भक्तास्तु ते जना:।
मद्भक्तस्य ये भक्तास्ते मे भक्ततमा मता:॥
श्वेताश्वतरोपनिषत् में तो स्पष्ट ही लिखा है जैसी भक्ति भगवान् में हो वैसी ही गुरु में हो। अतः शास्त्र वेदसम्मत निर्विवाद सिद्ध सिद्धान्त है कि श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष की भक्ति द्वारा जीव अपने परम चरम लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। इसी सिद्धान्त का प्रतिपादन श्री आचार्य श्री ने अनेक जगह किया है। यह अवश्य ध्यान रहे कि दम्भी गुरु से सावधान रहना है।
प्रस्तुत पुस्तक में उनके कुछ प्रवचनों के अंश संकलित किये गये हैं। पूर्णतया प्रयास किया गया है कि आचार्य श्री की दिव्य वाणी को यथार्थ रूप में ही प्रस्तुत किया जाय। अंग्रेजी भाषा के शब्द भी वैसे ही लिखे गये हैं जैसे उन्होंने बोले हैं।
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | सिद्धांत |
विषयवस्तु | गुरु - सच्चा आध्यात्मिक पथ प्रदर्शक, तत्वज्ञान |
फॉर्मेट | पेपरबैक |
वर्गीकरण | संकलन |
लेखक | जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
पृष्ठों की संख्या | 106 |
वजन (ग्राम) | 140 |
आकार | 14 सेमी X 22 सेमी X 1 सेमी |
आई.एस.बी.एन. | 9789380661902 |
Divine as alwaysDec 12, 2024 5:30:11 AM