प्रणमामि नित्यं, प्रणमामि नित्यम्।
प्रणमामि नित्यं, गुरुधामगुरुरूपम्॥
गुरुधाम के सच्चिदानन्द स्वरूप का वर्णन असम्भव ही है। प्रस्तुत पुस्तक देखने एवं पढ़ने मात्र से जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अनन्त स्मृतियाँ, उनके अनन्त उपकारों की गाथा, उनकी करुणा, उनका प्रेम, सभी कुछ मानस पटल पर उभर आता है। इस दिव्य स्मारक की नक्काशी, पच्चीकारी सभी कुछ अनुपमेय है। यह केवल अनुभव का विषय है। इसका हर पत्थर सजीव एवं भक्तिरस से भरा हुआ है।
गुरु भक्ति, गुरु प्रेम, गुरु निष्ठा, गुरु सेवा का प्रतीक यह दिव्यातिदिव्य स्मारक युगों युगों तक जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज की मंगल कीर्ति का गान करता रहेगा। भारतीय इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी जगद्गुरु की पुत्रियों ने अपने गुरु के पदचिह्नों पर चलते हुए उनकी समस्त जनकल्याणकारी योजनाओं को अत्यधिक व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ाने के साथ साथ, उनके भक्तियोगरसावतार सर्वधर्मसमन्वयात्मक स्वरूप, उनके अद्वितीय दिव्य ज्ञान एवं दिव्य प्रेम का, युगों युगों तक यशोगान करने के लिए इस दिव्य स्मारक का निर्माण कराया।
सभी भक्त, सभी श्रद्धालु, सभी अनुयायी श्री गुरुवर के श्री चरणों में विनम्र निवेदन करते हैं कि जन्म जन्मान्तर तक उनकी अनन्य, निष्काम भक्ति करते हुये ही हम अपना जीवन व्यतीत करें।
Guru Dham Bhakti Mandirप्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
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प्रणमामि नित्यं, प्रणमामि नित्यम्।
प्रणमामि नित्यं, गुरुधामगुरुरूपम्॥
गुरुधाम के सच्चिदानन्द स्वरूप का वर्णन असम्भव ही है। प्रस्तुत पुस्तक देखने एवं पढ़ने मात्र से जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अनन्त स्मृतियाँ, उनके अनन्त उपकारों की गाथा, उनकी करुणा, उनका प्रेम, सभी कुछ मानस पटल पर उभर आता है। इस दिव्य स्मारक की नक्काशी, पच्चीकारी सभी कुछ अनुपमेय है। यह केवल अनुभव का विषय है। इसका हर पत्थर सजीव एवं भक्तिरस से भरा हुआ है।
गुरु भक्ति, गुरु प्रेम, गुरु निष्ठा, गुरु सेवा का प्रतीक यह दिव्यातिदिव्य स्मारक युगों युगों तक जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज की मंगल कीर्ति का गान करता रहेगा। भारतीय इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी जगद्गुरु की पुत्रियों ने अपने गुरु के पदचिह्नों पर चलते हुए उनकी समस्त जनकल्याणकारी योजनाओं को अत्यधिक व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ाने के साथ साथ, उनके भक्तियोगरसावतार सर्वधर्मसमन्वयात्मक स्वरूप, उनके अद्वितीय दिव्य ज्ञान एवं दिव्य प्रेम का, युगों युगों तक यशोगान करने के लिए इस दिव्य स्मारक का निर्माण कराया।
सभी भक्त, सभी श्रद्धालु, सभी अनुयायी श्री गुरुवर के श्री चरणों में विनम्र निवेदन करते हैं कि जन्म जन्मान्तर तक उनकी अनन्य, निष्काम भक्ति करते हुये ही हम अपना जीवन व्यतीत करें।
भाषा | द्विभाषी, हिंदी, अंग्रेजी |
शैली / रचना-पद्धति | स्मारिका |
फॉर्मेट | कॉफी टेबल बुक |
वर्गीकरण | विशेष |
लेखक | राधा गोविंद समिति |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
पृष्ठों की संख्या | 336 |
वजन (ग्राम) | 1555 |
आकार | 25 सेमी X 31.5 सेमी X 2.5 सेमी |
आई.एस.बी.एन. | 9789390373000 |