"एक भगवदप्राप्त संत के पास एक अलौकिक निधि होती है - भगवान का दिव्य प्रेम - जिसे वह छिपाने का पूरा प्रयास करता है। लेकिन कभी-कभी, अपनी पूरी कोशिश के बाद भी वह भगवान के प्रति अपने प्रेम को नियंत्रित या छिपा नहीं पाता और उस प्रेम की झलक संसार के सामने प्रकट हो जाती है ... एक महापुरुष में ऐसे दिव्य महाभाव के लक्षण प्रकट होते देख, आप थोड़ा बहुत अनुमान लगा सकते हैं कि उसके भीतर दिव्य प्रेम का अथाह सागर भरा हुआ है ..." जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज
आजकल, आध्यात्मिकता के नाम पर हो रहे पाखंड के चलते, यह स्पष्ट करना आवश्यक हो गया है कि हमारे शास्त्रों के अनुसार वास्तविक संत कौन है और उस संत की पहचान कैसे की जा सकती है।
जगदगुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज भारत में तथाकथित गुरुओं की बढ़ती संख्या के बारे में बहुत खुल कर बोलते थे - ऐसे पाखंडी जो आध्यात्मिकता के नाम पर विभिन्न दावे करते हैं और बिना किसी शास्त्रीय ज्ञान के, जनता को अपने स्वार्थ के लिए, उनकी सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने का कर के भ्रमित करते हैं।
इस छोटी सी पुस्तक में, श्री महाराज जी ने इस बात को इतने सरल तरीके से समझाया है कि कोई भी, चाहे उनकी समझ का स्तर कुछ भी हो, वो ये अच्छी तरह से समझ जाएगा कि किसे अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शक या गुरु के रूप में स्वीकार करना चाहिए।
Guru Kaun? - Hindiप्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
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"एक भगवदप्राप्त संत के पास एक अलौकिक निधि होती है - भगवान का दिव्य प्रेम - जिसे वह छिपाने का पूरा प्रयास करता है। लेकिन कभी-कभी, अपनी पूरी कोशिश के बाद भी वह भगवान के प्रति अपने प्रेम को नियंत्रित या छिपा नहीं पाता और उस प्रेम की झलक संसार के सामने प्रकट हो जाती है ... एक महापुरुष में ऐसे दिव्य महाभाव के लक्षण प्रकट होते देख, आप थोड़ा बहुत अनुमान लगा सकते हैं कि उसके भीतर दिव्य प्रेम का अथाह सागर भरा हुआ है ..." जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज
आजकल, आध्यात्मिकता के नाम पर हो रहे पाखंड के चलते, यह स्पष्ट करना आवश्यक हो गया है कि हमारे शास्त्रों के अनुसार वास्तविक संत कौन है और उस संत की पहचान कैसे की जा सकती है।
जगदगुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज भारत में तथाकथित गुरुओं की बढ़ती संख्या के बारे में बहुत खुल कर बोलते थे - ऐसे पाखंडी जो आध्यात्मिकता के नाम पर विभिन्न दावे करते हैं और बिना किसी शास्त्रीय ज्ञान के, जनता को अपने स्वार्थ के लिए, उनकी सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने का कर के भ्रमित करते हैं।
इस छोटी सी पुस्तक में, श्री महाराज जी ने इस बात को इतने सरल तरीके से समझाया है कि कोई भी, चाहे उनकी समझ का स्तर कुछ भी हो, वो ये अच्छी तरह से समझ जाएगा कि किसे अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शक या गुरु के रूप में स्वीकार करना चाहिए।
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | सिद्धांत |
फॉर्मेट | पेपरबैक |
लेखक | जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
आकार | 16 सेमी x 10 सेमी x 0.4 सेमी |
पृष्ठों की संख्या | 34 |
वजन (ग्राम) | 45 |
I read this book on an auspicious occasion of this year's Guru Purnima 2024. This book is full of divine wisdom from Shri Maharaj Ji on how to choose Guru wisely to reach our ultimate goal before we loose this human form. It also teaches the importance of having true Guru as a mentor and guidance in our Spiritual journey and how to find them .The time when every next person is claiming himself/herself as guru even without having a proper knowledge of Scriptures, Shri Maharaj Ji, through this book, made every Sadhak aware from being misguided. Radhey Radhey !!!Aug 19, 2024 4:37:00 AM