गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया भगवत्तत्त्व को जानने के लिये किसी श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष के शरणागत होकर उससे जिज्ञासु भाव से प्रश्न करो और उसकी सेवा करो।
किन्तु यह गुरु सेवा क्या है और किस प्रकार की जाय जिससे हम अपना परम चरम लक्ष्य ‘स्वसुखवासना गंध लेश शून्य श्रीकृष्ण सुखैकतात्पर्यमयी सेवा’ प्राप्त कर सकें। प्रारम्भ में तन, मन, धन गुरु सेवा में ही समर्पित करना होगा। पश्चात् अन्तःकरण शुद्धि होने पर गुरु स्वरूप शक्ति द्वारा अन्तःकरण को दिव्य बनाकर उसमें प्रेम दान करेगा तब श्री कृष्ण की सेवा प्राप्त होगी।
अतः हमारा प्रत्येक कार्य हरि गुरु प्रीत्यर्थ ही हो यही सेवा का रहस्य है। आचार्य श्री ने हर साधक के मन में भगवद् सेवा का सिद्धान्त कूट कूट कर भर दिया है। उनके कठिन प्रयास के कारण ही आज उनके सभी अनुयायी उनके द्वारा प्रारम्भ किये गये लोकोपकारी कार्यों में अपना सर्वस्व समर्पित करते हुए निष्काम भाव से सेवा कर रहे हैं। गुरुवर की दिव्य वाणी ‘सेवा से बड़ी साधना न कभी थी न होगी’, उन्हें अत्याधिक उत्साहित कर देती है। सेवा सम्बन्धी तत्त्वज्ञान जो आचार्य श्री ने विभिन्न प्रकार से समझाया, आंशिक रूप में प्रस्तुत पुस्तक में संकलित किया गया है- पूर्णतया प्रयास किया गया है कि आचार्य श्री की दिव्य वाणी को मूल रूप में ही प्रस्तुत किया जाय।
Guru Seva - Hindiप्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
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गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया भगवत्तत्त्व को जानने के लिये किसी श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष के शरणागत होकर उससे जिज्ञासु भाव से प्रश्न करो और उसकी सेवा करो।
किन्तु यह गुरु सेवा क्या है और किस प्रकार की जाय जिससे हम अपना परम चरम लक्ष्य ‘स्वसुखवासना गंध लेश शून्य श्रीकृष्ण सुखैकतात्पर्यमयी सेवा’ प्राप्त कर सकें। प्रारम्भ में तन, मन, धन गुरु सेवा में ही समर्पित करना होगा। पश्चात् अन्तःकरण शुद्धि होने पर गुरु स्वरूप शक्ति द्वारा अन्तःकरण को दिव्य बनाकर उसमें प्रेम दान करेगा तब श्री कृष्ण की सेवा प्राप्त होगी।
अतः हमारा प्रत्येक कार्य हरि गुरु प्रीत्यर्थ ही हो यही सेवा का रहस्य है। आचार्य श्री ने हर साधक के मन में भगवद् सेवा का सिद्धान्त कूट कूट कर भर दिया है। उनके कठिन प्रयास के कारण ही आज उनके सभी अनुयायी उनके द्वारा प्रारम्भ किये गये लोकोपकारी कार्यों में अपना सर्वस्व समर्पित करते हुए निष्काम भाव से सेवा कर रहे हैं। गुरुवर की दिव्य वाणी ‘सेवा से बड़ी साधना न कभी थी न होगी’, उन्हें अत्याधिक उत्साहित कर देती है। सेवा सम्बन्धी तत्त्वज्ञान जो आचार्य श्री ने विभिन्न प्रकार से समझाया, आंशिक रूप में प्रस्तुत पुस्तक में संकलित किया गया है- पूर्णतया प्रयास किया गया है कि आचार्य श्री की दिव्य वाणी को मूल रूप में ही प्रस्तुत किया जाय।
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | सिद्धांत |
विषयवस्तु | गुरु - सच्चा आध्यात्मिक पथ प्रदर्शक, तत्वज्ञान |
फॉर्मेट | पेपरबैक |
वर्गीकरण | संकलन |
लेखक | जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
पृष्ठों की संख्या | 112 |
वजन (ग्राम) | 146 |
आकार | 14 सेमी X 22 सेमी X 1 सेमी |
आई.एस.बी.एन. | 9789380661926 |