लेखनी कठोर हो गई, जो इस लीला का वर्णन करने जा रही है। चलती है, फिर रुक जाती है। कैसे लिखी जाय उस कृपास्वरूप की यह लीला, जिसका सनातन नित्य स्वरूप उसकी उपस्थिति हर क्षण, हर साधक के हृदय में है। कोई भी यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि हमारे गुरुवर, हमारे कर्णधार, हमारे पथ-प्रदर्शक, हमारे मध्य नहीं हैं। उन्होंने अपनी प्रकट लीलाओं को भक्ति-धाम में विराम दिया किन्तु उनके दिव्य धाम में तो अविराम नित्यनिकुंज लीला चलती है। यह लिखना भी अनुचित सा ही लगता है कि उन्होंने नित्य निकुंज लीला में प्रवेश किया। प्रवेश तो साधन-सिद्ध महापुरुष का होता है। फिर उनके प्रियजनों का तो यह पूर्ण विश्वास है कि नित्य निकुंज विहारिणी ह्लादिनी शक्ति का ही तो प्राकट्य जगद्गुरूत्तम कृपालु रूप में हुआ, तो फिर उनकी लीलायें तो नित्य ही हैं। बस ऐसा ही कहा जाय, वे अब इन आँखों से ओझल हो गये। जो प्राकृत इन्द्रियों ने उनकी मधुरातिमधुर लीलाओं का रसपान किया, वह अब दिव्य इन्द्रियों के द्वारा ही सम्भव होगा, किन्तु उन्हीं की वाणी में -
एक दिन तू देगी दर्शन है भरोसा राधे।
इसी विश्वास इसी आशा पर जीवित रहना होगा, वे अवश्य दर्शन देंगे। उन्हीं के श्री चरणों में प्रार्थना है कि जो उन्होंने समस्तशास्त्रीय सिद्धान्तों का सार स्वरूप अमूल्य खजाना प्रदान किया है, उसी में उनका दर्शन करते हुये, उनके सिद्धान्तों का अनुसरण करते हुये, अपना जीवन व्यतीत करें।
Lila Samvaran Hindi Hardcoverप्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
---|
लेखनी कठोर हो गई, जो इस लीला का वर्णन करने जा रही है। चलती है, फिर रुक जाती है। कैसे लिखी जाय उस कृपास्वरूप की यह लीला, जिसका सनातन नित्य स्वरूप उसकी उपस्थिति हर क्षण, हर साधक के हृदय में है। कोई भी यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि हमारे गुरुवर, हमारे कर्णधार, हमारे पथ-प्रदर्शक, हमारे मध्य नहीं हैं। उन्होंने अपनी प्रकट लीलाओं को भक्ति-धाम में विराम दिया किन्तु उनके दिव्य धाम में तो अविराम नित्यनिकुंज लीला चलती है। यह लिखना भी अनुचित सा ही लगता है कि उन्होंने नित्य निकुंज लीला में प्रवेश किया। प्रवेश तो साधन-सिद्ध महापुरुष का होता है। फिर उनके प्रियजनों का तो यह पूर्ण विश्वास है कि नित्य निकुंज विहारिणी ह्लादिनी शक्ति का ही तो प्राकट्य जगद्गुरूत्तम कृपालु रूप में हुआ, तो फिर उनकी लीलायें तो नित्य ही हैं। बस ऐसा ही कहा जाय, वे अब इन आँखों से ओझल हो गये। जो प्राकृत इन्द्रियों ने उनकी मधुरातिमधुर लीलाओं का रसपान किया, वह अब दिव्य इन्द्रियों के द्वारा ही सम्भव होगा, किन्तु उन्हीं की वाणी में -
एक दिन तू देगी दर्शन है भरोसा राधे।
इसी विश्वास इसी आशा पर जीवित रहना होगा, वे अवश्य दर्शन देंगे। उन्हीं के श्री चरणों में प्रार्थना है कि जो उन्होंने समस्तशास्त्रीय सिद्धान्तों का सार स्वरूप अमूल्य खजाना प्रदान किया है, उसी में उनका दर्शन करते हुये, उनके सिद्धान्तों का अनुसरण करते हुये, अपना जीवन व्यतीत करें।
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | स्मारिका |
फॉर्मेट | कॉफी टेबल बुक |
लेखक | राधा गोविंद समिति |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
पृष्ठों की संख्या | 192 |
वजन (ग्राम) | 770 |
आकार | 22 सेमी X 27.5 सेमी X 1 सेमी |
आई.एस.बी.एन. | 9789380661490 |
शब्द नहीं है लिखने के लिए..बस यही कहना चाहूंगा कि जो भी हमारे प्राण प्यारे गुरुवर की लीला संवरण को पड़ेगा अश्रु स्वतः प्रवाहित हो उठेंगे ! 🙏💔May 15, 2024 11:04:27 AM