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हमारे यहाँ सनातन धर्म में नाना प्रकार का वैमत्य दिखाई पड़ता है। वेदों में, शास्त्रों में, पुराणों में एवं अन्यान्य आर्ष ग्रन्थों में मतभेद सा है, जिसका निराकरण जनसाधारण नहीं कर पाता, जिसके परिणाम स्वरूप जीव सुलझने के बजाय अधिकाधिक उलझता जाता है। इस विरोधाभास का अत्यन्ताभाव जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज जैसे अलौकिक प्रतिभा सम्पन्न महापुरुष ही कर सकते हैं। उनका व्यक्तित्व कृतित्व एवं उनके प्रवचन इसका प्रमाण हैं कि किस प्रकार उन्होंने अद्वैतवाद, विशिष्टाद्वैतवाद, द्वैताद्वैतवाद, द्वैतवाद विशुद्धाद्वैतवाद, अचिन्त्यभेदाभेदवाद आदि मतानुयायी आचार्यो के सिद्धान्तों का सुन्दर समन्वय करते हुये भक्तियोग की प्रमुख उपयोगिता एवं विलक्षणता पर प्रकाश डाला है।

अपनी ‘मैं’ कौन? ‘मेरा’ कौन? ऐतिहासिक प्रवचन शृंखला में समस्त शास्त्रों वेदों का ज्ञान अत्यधिक सरल सरस भाषा में प्रकट करके उन्होंने भारतीय वैदिक संस्कृति को सदा सदा के लिए गौरवान्वित कर दिया एवं भारत जिन कारणों से जगद्गुरु के रूप में प्रतिष्ठित रहा है उसके मूलाधार रूप में जगद्गुरु कृपालु जी महाराज, समस्त धर्म ग्रन्थों की दिव्य सम्पदा को जन साधारण तक पहुँचा कर ऋषि मुनियों की परम्परा को पुनर्जीवन प्रदान किया।

इस विकराल कलिकाल में सर्वथा भ्रान्त जीवों के कल्याणार्थ वैदिक सिद्धान्तों पर पूर्ण दृष्टिकोण रखते हुये भगवान् राम कृष्ण प्राप्त्यर्र्थ भक्तियोग की उपादेयता एवं उसका षड्दर्शनों से सम्बन्ध, दो प्रश्नों को सामने रखकर ‘मैं’ कौन? ‘मेरा’ कौन? इसका उत्तर देते हुये सर्वथा अनूठे अलौकिक ढंग से प्रस्तुत किया है। जब श्रोता उनका प्रवचन सुनते हैं तो आश्चर्यचकित हो जाते हैं जब वे वेद से लेकर रामायण तक प्रमाणों से युक्त नम्बर बताते हुये बोलते हैं। सम्पूर्ण विश्व आज इनकी अलौकिक प्रतिभा के सामने नतमस्तक हो गया है।

श्रोताओं के प्रेमाग्रह पर इस प्रवचन शृंखला को पुस्तक रूप में पाँच भागों में प्रकाशित किया जा रहा है। प्रवचन न. १ से २२ तक भाग-१, प्रवचन न. २३ से ४३ तक भाग-२, प्रवचन न. ४४ से ६३ तक भाग-३, प्रवचन न. ६४ से ८२ तक भाग-४, प्रवचन न. ८३ से १०३ तक भाग-५।

Main Kaun? Mera Kaun? - Hindi
in stock INR 1840
1 5

मैं कौन? मेरा कौन? - हिन्दी

समस्त ग्रंथों की दिव्य संपदा ‘मैं कौन? मेरा कौन?’ प्रवचन शृंखला के रूप में।
भाषा - हिन्दी

₹1,840
₹3,000   (39%छूट)


विशेषताएं
  • गहन वैदिक दर्शन की, बोलचाल की भाषा में, सरल व्याख्या
  • इस युग एवं पीढ़ी के लिए एक आवश्यक ग्रंथ जो विरोधी प्रतीत होने वाले शास्त्रीय मतों का समाधान करता है, भ्रांतियों को दूर करता है, और सभी मूलभूत आध्यात्मिक प्रश्नों के उत्तर देता है
  • विद्वानों, विद्यार्थियों और जिज्ञासु पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी, प्रत्येक खंड के अंत में दी गई प्रवचनों में उद्धृत श्लोकों की, एक अनुक्रमणिका
  • हमारे दैनिक जीवन से दिलचस्प उदाहरण सरलता से समझाने के लिए
  • हमारे शास्त्रों की प्रेरक कहानियों के साथ
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प्रकार विक्रेता मूल्य मात्रा

विवरण

हमारे यहाँ सनातन धर्म में नाना प्रकार का वैमत्य दिखाई पड़ता है। वेदों में, शास्त्रों में, पुराणों में एवं अन्यान्य आर्ष ग्रन्थों में मतभेद सा है, जिसका निराकरण जनसाधारण नहीं कर पाता, जिसके परिणाम स्वरूप जीव सुलझने के बजाय अधिकाधिक उलझता जाता है। इस विरोधाभास का अत्यन्ताभाव जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज जैसे अलौकिक प्रतिभा सम्पन्न महापुरुष ही कर सकते हैं। उनका व्यक्तित्व कृतित्व एवं उनके प्रवचन इसका प्रमाण हैं कि किस प्रकार उन्होंने अद्वैतवाद, विशिष्टाद्वैतवाद, द्वैताद्वैतवाद, द्वैतवाद विशुद्धाद्वैतवाद, अचिन्त्यभेदाभेदवाद आदि मतानुयायी आचार्यो के सिद्धान्तों का सुन्दर समन्वय करते हुये भक्तियोग की प्रमुख उपयोगिता एवं विलक्षणता पर प्रकाश डाला है।

अपनी ‘मैं’ कौन? ‘मेरा’ कौन? ऐतिहासिक प्रवचन शृंखला में समस्त शास्त्रों वेदों का ज्ञान अत्यधिक सरल सरस भाषा में प्रकट करके उन्होंने भारतीय वैदिक संस्कृति को सदा सदा के लिए गौरवान्वित कर दिया एवं भारत जिन कारणों से जगद्गुरु के रूप में प्रतिष्ठित रहा है उसके मूलाधार रूप में जगद्गुरु कृपालु जी महाराज, समस्त धर्म ग्रन्थों की दिव्य सम्पदा को जन साधारण तक पहुँचा कर ऋषि मुनियों की परम्परा को पुनर्जीवन प्रदान किया।

इस विकराल कलिकाल में सर्वथा भ्रान्त जीवों के कल्याणार्थ वैदिक सिद्धान्तों पर पूर्ण दृष्टिकोण रखते हुये भगवान् राम कृष्ण प्राप्त्यर्र्थ भक्तियोग की उपादेयता एवं उसका षड्दर्शनों से सम्बन्ध, दो प्रश्नों को सामने रखकर ‘मैं’ कौन? ‘मेरा’ कौन? इसका उत्तर देते हुये सर्वथा अनूठे अलौकिक ढंग से प्रस्तुत किया है। जब श्रोता उनका प्रवचन सुनते हैं तो आश्चर्यचकित हो जाते हैं जब वे वेद से लेकर रामायण तक प्रमाणों से युक्त नम्बर बताते हुये बोलते हैं। सम्पूर्ण विश्व आज इनकी अलौकिक प्रतिभा के सामने नतमस्तक हो गया है।

श्रोताओं के प्रेमाग्रह पर इस प्रवचन शृंखला को पुस्तक रूप में पाँच भागों में प्रकाशित किया जा रहा है। प्रवचन न. १ से २२ तक भाग-१, प्रवचन न. २३ से ४३ तक भाग-२, प्रवचन न. ४४ से ६३ तक भाग-३, प्रवचन न. ६४ से ८२ तक भाग-४, प्रवचन न. ८३ से १०३ तक भाग-५।

विशेष विवरण

भाषा हिन्दी
शैली / रचना-पद्धति सिद्धांत
विषयवस्तु स्वयं को जानो, अपने वेदों और शास्त्रों को जानें, अध्यात्म के मूल सिद्धांत, क्यों और क्या?
फॉर्मेट हार्डकवर
वर्गीकरण प्रवचन
लेखक जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
प्रकाशक राधा गोविंद समिति
पृष्ठों की संख्या 1894
वजन (ग्राम) 3948
आकार 19 सेमी X 26 सेमी X 13 सेमी

पाठकों के रिव्यू

  0/5

1 समीक्षा

Itna gyan ek saath.... sab questions k answers hai iss book mein..... Albeli sarkar ki jai!!!!!!!!
Anuj
Mar 24, 2022 4:04:52 PM