जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज श्री कृष्ण के संयोग में रहने का आनंदमय अनुभव का विवरण करते हैं। वे उस क्षण का वर्णन करते है जब भगवान् एक जीव के हृदय में दिव्य प्रेम दे देते हैं, और इस दिव्य प्रेम को प्राप्त करने के बाद जीव के साथ कौन कौन से अनुभव होते हैं। श्री कृष्ण कैसे अपने पूर्ण शरणापन्न भक्त से मिलने के लिए तरह तरह के बहाने करते हैं, और जब वे उनसे मिलते हैं , तब उनका भक्तों के साथ कैसा मधुर एवं लुभावना व्यवहार होता है यह भी इन पदों में विवरणित किया गया है। इस प्रकार के विस्तृत वर्णन से रूपध्यान और श्री कृष्ण के प्रति प्रेम भावना का अनुभव करने में सहायता मिलती है । भक्ति के इस महान संग्रह / महान निधि, 'प्रेम रस मदिरा' का यह प्रन्द्रहवाँ अध्याय है। 'प्रेम रस मदिरा' के दिव्य अद्वितीय 1008 भक्ति से परिपूर्ण पद वेदों, पुराणों, उपनिषदों आदि के सिद्धांतों पर आधारित हैं।