दिव्य वृंदावन के अलौकिक फूलों एवं लताओं से घिरे कुंजों में श्री राधा-कृष्ण की अत्यंत गोपनीय लीलाएं होती हैं। इन आत्मीय लीलाओं में प्रवेश पाने वाली केवल उनकी सबसे अंतरंग परिकर, सखियाँ, हैं। इन 29 पदों में, जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज हमें इन लीलाओं के सौंदर्य, भव्यता और रस की एक झलक देते हैं। अपने प्रमुख रसिक भक्तों से घिरे, निष्काम दिव्य प्रेम के मूर्तिमान स्वरूप, श्री राधा-कृष्ण एक साथ कभी झूला झूलते हैं, कभी नृत्य करते हैं, वर्षा ऋतु में एक-दूसरे को ओट करते हैं एवं कभी एक-दूसरे का आलिंगन करते हैं। भक्ति के इस महान संग्रह / महान निधि, 'प्रेम रस मदिरा' का यह चौदहवाँ अध्याय है। 'प्रेम रस मदिरा' के दिव्य अद्वितीय 1008 भक्ति से परिपूर्ण पद वेदों, पुराणों, उपनिषदों आदि के सिद्धांतों पर आधारित हैं।