श्रीकृष्ण की नित्य सेवा प्राप्त करना ही प्रत्येक जीव का अन्तिम लक्ष्य है तदर्थ निष्काम प्रेम प्राप्त करना होगा। निष्काम प्रेम प्राप्ति की साधना तो तभी प्रारम्भ हो सकती है जब हम निष्काम प्रेम का अर्थ भली भाँति समझे। संसार में भी प्रेम शब्द बोला जाता है, किन्तु प्रेम क्या है, सकाम निष्काम प्रेम का क्या रहस्य है इत्यादि प्रश्नों का समाधान होना परमावश्यक है। तब ही कोई साधक अपने लक्ष्य की ओर तेजी से अग्रसर हो सकेगा। प्रस्तुत पुस्तक में श्री महाराज जी द्वारा सन् 1989 में दिये गये चार प्रवचन यथार्थ रूप में प्रकाशित किये जा रहे हैं। साधकों के लिए अनमोल खजाना है।
Nishkam Prem - Hindiप्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
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श्रीकृष्ण की नित्य सेवा प्राप्त करना ही प्रत्येक जीव का अन्तिम लक्ष्य है तदर्थ निष्काम प्रेम प्राप्त करना होगा। निष्काम प्रेम प्राप्ति की साधना तो तभी प्रारम्भ हो सकती है जब हम निष्काम प्रेम का अर्थ भली भाँति समझे। संसार में भी प्रेम शब्द बोला जाता है, किन्तु प्रेम क्या है, सकाम निष्काम प्रेम का क्या रहस्य है इत्यादि प्रश्नों का समाधान होना परमावश्यक है। तब ही कोई साधक अपने लक्ष्य की ओर तेजी से अग्रसर हो सकेगा। प्रस्तुत पुस्तक में श्री महाराज जी द्वारा सन् 1989 में दिये गये चार प्रवचन यथार्थ रूप में प्रकाशित किये जा रहे हैं। साधकों के लिए अनमोल खजाना है।
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | सिद्धांत |
विषयवस्तु | निष्काम प्रेम, तत्वज्ञान, निष्कामता, रागानुगा भक्ति, शरणागति, अध्यात्म के मूल सिद्धांत |
फॉर्मेट | पेपरबैक |
वर्गीकरण | प्रवचन |
लेखक | जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
पृष्ठों की संख्या | 105 |
वजन (ग्राम) | 156 |
आकार | 14 सेमी X 22 सेमी X 0.8 सेमी |
आई.एस.बी.एन. | 9789380661346 |