अनन्त बार हमें मानव देह मिला, अनन्त सन्तों के प्रवचन सुने, अनन्त बार वेदों शास्त्रों का अध्ययन किया, किन्तु यह निश्चय नहीं हो पाया, वह भगवान् कैसे मिलेगा। जैसे समुद्र में नदियाँ अनेक मार्गों से होकर जाती हैं, किन्तु अन्त में समुद्र में ही मिल जाती हैं। इसी प्रकार अनेक मार्ग हैं — भगवान् में लीन होने के लिये, भगवान् के आनन्द को प्राप्त करने के लिये, भगवान् के ज्ञान को प्राप्त करने के लिये। किन्तु, आचार्य श्री के अनुसार केवल एक मार्ग है भगवान् को पाने का, कोई झगड़ा नहीं बीच में। उसी मार्ग का निरूपण प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है।
Prem Marg - Hindiप्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
---|
अनन्त बार हमें मानव देह मिला, अनन्त सन्तों के प्रवचन सुने, अनन्त बार वेदों शास्त्रों का अध्ययन किया, किन्तु यह निश्चय नहीं हो पाया, वह भगवान् कैसे मिलेगा। जैसे समुद्र में नदियाँ अनेक मार्गों से होकर जाती हैं, किन्तु अन्त में समुद्र में ही मिल जाती हैं। इसी प्रकार अनेक मार्ग हैं — भगवान् में लीन होने के लिये, भगवान् के आनन्द को प्राप्त करने के लिये, भगवान् के ज्ञान को प्राप्त करने के लिये। किन्तु, आचार्य श्री के अनुसार केवल एक मार्ग है भगवान् को पाने का, कोई झगड़ा नहीं बीच में। उसी मार्ग का निरूपण प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है।
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | सिद्धांत |
विषयवस्तु | छोटी किताब, निष्काम प्रेम, तत्वज्ञान, निष्कामता |
फॉर्मेट | पेपरबैक |
वर्गीकरण | प्रवचन |
लेखक | जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
पृष्ठों की संख्या | 51 |
वजन (ग्राम) | 56 |
आकार | 12.5 सेमी X 18 सेमी X 0.5 सेमी |
आई.एस.बी.एन. | 9788190966139 |