आनंदकंद श्री कृष्णचंद्र को भी क्रीतदास बना लेने वाला उन्हीं का परमांतरंग प्रेम तत्व है तथा यही अन्तिम तत्व है, उसी को लक्ष्य बनाकर प्रेम रस मदिरा ग्रन्थ लिखा गया है। इसमें 1008 पद हैं जिनमें श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का वर्णन, वेद शास्त्र, पुराणादि सम्मत एवं अनेक महापुरुषों की वाणियों के मतानुसार किया गया है। सगुण-साकार ब्रह्म की सरस लीलाओं का रस वैलक्षण्य विशेषरूपेण श्री कृष्णावतार में ही हुआ है। अत: इन सरस पदों का आधार उसी अवतार की लीलाएँ हैं।
प्रेम रस मदिरा भक्ति रस साहित्य में अद्वितीय है। सम्पूर्ण ग्रन्थ में कहीं भी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष तथा सकाम भक्ति को किंचित् भी स्थान नहीं दिया गया है।
भक्ति सम्बन्धी शास्त्रीय सिद्धान्तों को अत्यधिक सरल और सरस रूप में प्रस्तुत किया गया है जो सर्वसाधारण के लिये भी बोधगम्य है इसके अतिरिक्त श्री राधाकृष्ण की दास्य, सख्य, वात्सल्य तथा माधुर्य इन चार भावों की लीलाओं का विशद निरूपण है जो वेद, शास्त्र पुराणादि सम्मत है।
इसके द्वारा भगवदचरणानुरागियों साहित्यिकों एवं संगीत प्रेमियों आदि सभी ने अपने-अपने दृष्टिकोण एवं अपनी-अपनी रुचि के अनुसार अपनाकर अपनी-अपनी जिज्ञासा एवं पिपासा शान्त की। रसिकों ने इसे अपनी भाव संवृद्धि सम्बन्धी साधना का अवलम्ब बनाया, साहित्यिकों ने इसमें साहित्यिक समृद्धि को देखा और इसके भाषा सौष्ठव एवं अलंकारों में अपनी तृप्ति पायी। संगीत मर्मज्ञों ने अनेक राग रागिनियों में इसके पदों को बाँधकर रसास्वादन किया एवं कराया।
प्रेम रस मदिरा से ओत प्रोत ‘प्रेम रस मदिरा’ का आज के इस युग में विशेष महत्व है जिससे कलियुग की विभीषिका का सरलता से सामना किया जा सकता है। यह ऐसी मदिरा है जो बेसुध कर देती है। इसके पान करने के पश्चात् युगल दर्शन, युगल प्रेम, युगल सेवा बस यही कामना शेष रह जाती है समस्त सांसारिक कामनायें समाप्त हो जाती हैं।
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आनंदकंद श्री कृष्णचंद्र को भी क्रीतदास बना लेने वाला उन्हीं का परमांतरंग प्रेम तत्व है तथा यही अन्तिम तत्व है, उसी को लक्ष्य बनाकर प्रेम रस मदिरा ग्रन्थ लिखा गया है। इसमें 1008 पद हैं जिनमें श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का वर्णन, वेद शास्त्र, पुराणादि सम्मत एवं अनेक महापुरुषों की वाणियों के मतानुसार किया गया है। सगुण-साकार ब्रह्म की सरस लीलाओं का रस वैलक्षण्य विशेषरूपेण श्री कृष्णावतार में ही हुआ है। अत: इन सरस पदों का आधार उसी अवतार की लीलाएँ हैं।
प्रेम रस मदिरा भक्ति रस साहित्य में अद्वितीय है। सम्पूर्ण ग्रन्थ में कहीं भी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष तथा सकाम भक्ति को किंचित् भी स्थान नहीं दिया गया है।
भक्ति सम्बन्धी शास्त्रीय सिद्धान्तों को अत्यधिक सरल और सरस रूप में प्रस्तुत किया गया है जो सर्वसाधारण के लिये भी बोधगम्य है इसके अतिरिक्त श्री राधाकृष्ण की दास्य, सख्य, वात्सल्य तथा माधुर्य इन चार भावों की लीलाओं का विशद निरूपण है जो वेद, शास्त्र पुराणादि सम्मत है।
इसके द्वारा भगवदचरणानुरागियों साहित्यिकों एवं संगीत प्रेमियों आदि सभी ने अपने-अपने दृष्टिकोण एवं अपनी-अपनी रुचि के अनुसार अपनाकर अपनी-अपनी जिज्ञासा एवं पिपासा शान्त की। रसिकों ने इसे अपनी भाव संवृद्धि सम्बन्धी साधना का अवलम्ब बनाया, साहित्यिकों ने इसमें साहित्यिक समृद्धि को देखा और इसके भाषा सौष्ठव एवं अलंकारों में अपनी तृप्ति पायी। संगीत मर्मज्ञों ने अनेक राग रागिनियों में इसके पदों को बाँधकर रसास्वादन किया एवं कराया।
प्रेम रस मदिरा से ओत प्रोत ‘प्रेम रस मदिरा’ का आज के इस युग में विशेष महत्व है जिससे कलियुग की विभीषिका का सरलता से सामना किया जा सकता है। यह ऐसी मदिरा है जो बेसुध कर देती है। इसके पान करने के पश्चात् युगल दर्शन, युगल प्रेम, युगल सेवा बस यही कामना शेष रह जाती है समस्त सांसारिक कामनायें समाप्त हो जाती हैं।
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | संकीर्तन, पद्य / काव्य |
विषयवस्तु | सर्वोत्कृष्ट रचना, तत्वज्ञान, भक्ति गीत और भजन |
फॉर्मेट | हार्डकवर |
वर्गीकरण | प्रमुख रचना |
लेखक | जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
पृष्ठों की संख्या | 486 |
वजन (ग्राम) | 212 |
आकार | 9 सेमी X 13 सेमी X 2.5 सेमी |
आई.एस.बी.एन. | 9789390373185 |