भगवान की सबसे गोपनीय शक्ति का सार एवं श्री राधा कृष्ण और उनकी नित्य परिकर, ब्रजगोपियों की एकमात्र निधि है, दिव्य प्रेम । यह गुरु द्वारा उन योग्य जीवों को कृपा द्वारा प्रदान किया जाता है जिनका अंतःकरण भक्ति एवं साधना के अभ्यास द्वारा शुद्ध हो चुका हो। इस अति दुर्लभ एवं अमूल्य निधि की प्राकृतिकता को इसके सबसे महान अधिष्ठाता, जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने बहुत सुंदरता से वर्णित किया है। भक्ति के इस महान संग्रह / महान निधि, 'प्रेम रस मदिरा' का यह छठा अध्याय है। 'प्रेम रस मदिरा' के दिव्य अद्वितीय 1008 भक्ति से परिपूर्ण पद वेदों, पुराणों, उपनिषदों आदि के सिद्धांतों पर आधारित हैं।