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9788194238621 619c9183855f393769098331 रूपध्यान विज्ञान - हिन्दी https://www.jkpliterature.org.in/s/61949a48ba23e5af80a5cfdd/63d77ae5bc4629f2b291ddf7/rupdhyan-vigyan-book.jpg

पुस्तक के नाम से ही पुस्तक का विषय स्पष्ट है। वेद से लेकर रामायण तक सभी ग्रन्थ एक स्वर से कहते हैं कि भगवान् का ध्यान करना चाहिये। ध्यान से ही भगवान् प्राप्त होते हैं। किसी भी प्रकार की साधना की जाय किन्तु स्मरण ही साधना का प्राण है, अर्थात् मन को भगवान् में लगाना। अनेक आचार्यों ने मन को भगवान् में लगाने के विभिन्न उपाय बताये हैं, किन्तु कुछ आचार्यों ने तो मन की भक्ति पर ध्यान ही नहीं दिया। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अपने हर प्रवचन में इसी बात पर जोर दिया है कि भक्ति मन को ही करनी है, बन्धन और मोक्ष का कारण मन ही है। शास्त्रीय प्रमाण देते हुए उन्होंने बार बार, बार बार यही समझाया है मन को ही भगवान् में लगाना है। मन का स्मरण ये भक्ति प्राण के समान है। बाकी जितनी भक्तियाँ है वो सब शव के समान है। कोई भी भक्ति करो किन्तु स्मरण के बिना उसका कोई मूल्य नहीं है।

मन भगवान् में लगाने के लिए उन्होंने जो विधि बताई है उसे उन्होंने रूपध्यान नाम दिया है। रूपध्यान अर्थात् श्री राधाकृष्ण की मनोमयी मूर्ति पर ध्यान केन्द्रित करना। प्रस्तुत पुस्तक में श्री महाराज जी द्वारा रूपध्यान सम्बन्धी विषय पर प्रकाश डाला गया है। जो कि साधक के लिए रूपध्यान का अभ्यास करने के लिए परमावश्यक है।

Rupdhyan Vigyan - Hindi
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रूपध्यान विज्ञान - हिन्दी

रूपध्यान विज्ञान - हिन्दी

जानिये रूपध्यान संबंधी अत्यंत बारीक बातें।
भाषा - हिन्दी

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विशेषताएं
  • ऐसे ध्यान करोगे तो अवश्य रूपध्यान बनेगा।
  • रूपध्यान करने की आसान और Powerful Technique.
  • सबसे Powerful रूपध्यान जो 99.9% लोग नहीं जानते।
  • भगवान् का रूपध्यान करना हुआ बहुत आसान है आज ही पढ़े रूपध्यान विज्ञान।
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प्रकारविक्रेतामूल्यमात्रा

विवरण

पुस्तक के नाम से ही पुस्तक का विषय स्पष्ट है। वेद से लेकर रामायण तक सभी ग्रन्थ एक स्वर से कहते हैं कि भगवान् का ध्यान करना चाहिये। ध्यान से ही भगवान् प्राप्त होते हैं। किसी भी प्रकार की साधना की जाय किन्तु स्मरण ही साधना का प्राण है, अर्थात् मन को भगवान् में लगाना। अनेक आचार्यों ने मन को भगवान् में लगाने के विभिन्न उपाय बताये हैं, किन्तु कुछ आचार्यों ने तो मन की भक्ति पर ध्यान ही नहीं दिया। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अपने हर प्रवचन में इसी बात पर जोर दिया है कि भक्ति मन को ही करनी है, बन्धन और मोक्ष का कारण मन ही है। शास्त्रीय प्रमाण देते हुए उन्होंने बार बार, बार बार यही समझाया है मन को ही भगवान् में लगाना है। मन का स्मरण ये भक्ति प्राण के समान है। बाकी जितनी भक्तियाँ है वो सब शव के समान है। कोई भी भक्ति करो किन्तु स्मरण के बिना उसका कोई मूल्य नहीं है।

मन भगवान् में लगाने के लिए उन्होंने जो विधि बताई है उसे उन्होंने रूपध्यान नाम दिया है। रूपध्यान अर्थात् श्री राधाकृष्ण की मनोमयी मूर्ति पर ध्यान केन्द्रित करना। प्रस्तुत पुस्तक में श्री महाराज जी द्वारा रूपध्यान सम्बन्धी विषय पर प्रकाश डाला गया है। जो कि साधक के लिए रूपध्यान का अभ्यास करने के लिए परमावश्यक है।

विशेष विवरण

भाषाहिन्दी
शैली / रचना-पद्धतिसिद्धांत
विषयवस्तुध्यान और विज़ुअलाइज़ेशन का विज्ञान, छोटी किताब, तत्वज्ञान, रूपध्यान
फॉर्मेटपेपरबैक
वर्गीकरणसंकलन
लेखकजगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
प्रकाशकराधा गोविंद समिति
पृष्ठों की संख्या102
वजन (ग्राम)142
आकार14 सेमी X 22 सेमी X 0.8 सेमी
आई.एस.बी.एन.9788194238621

पाठकों के रिव्यू

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1 समीक्षा

This book is a collection of Shri Maharaj Ji's Pravachans on Roopdhyan topic. This is a perfect Practical guide for the aspiring devotees for their daily Roopdhyan Meditation. Radhe Radhe.
प्रमाणित उपयोगकर्ता
Dec 18, 2023 7:27:35 AM