श्री राधाकृष्ण भक्ति के मूर्तिमान स्वरूप, भक्तियोगरसावातर, समन्वयवादी जगद्गुरु
श्री कृपालु जी महाराज के पाद-पद्मों में कोटि-कोटि प्रणाम!
गुरु निष्ठा, गुरु भक्ति, गुरु सेवा की ओर प्रेरित करने वाला गुरु पूर्णिमा का पर्व सर्वश्रेष्ठ पर्व है। किसी वास्तविक गुरु के मार्गदर्शन में साधना करना, भक्ति करना एवं उनके चरणों में मन-बुद्धि का पूर्ण समर्पण करना ही मानव-देह की सफलता है।
आज हमारे देश में अनेकों दम्भी, पाखण्डी लोग सिर मुड़वा कर, जटा रखकर, कंठी धारण कर, तिलक लगाकर, गेरुए वस्त्र धारण कर गुरु बन बैठे हैं और अपने अटपटे ज्ञान एवं मनगढ़ंत तर्कों से जनता को उलझाये रखते हैं। जिससे लोग वास्तविक गुरु के सान्निध्य से भी वंचित रह जाते हैं।
इस साधन साध्य अंक में, वेदाें-शास्त्रों द्वारा प्रमाणित जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचनों के अंशों द्वारा यह बताया गया कि साधकों को नकली गुरुओं से कैसे सावधान रहना है एवं कुसंग से बचकर कैसे अपनी साधना को सुरक्षित रखना है।
साधना में समय स्थान आदि का कोई प्रतिबन्ध नहीं है फिर भी गुरु धाम का विशेष महत्त्व है। यहाँ हमारा मन भगवान् में सरलता से लग जाता है। यहाँ का कण-कण दिव्य चिन्मय है। श्री गुरुवर की अनन्त स्मृतियाँ समाहित हैं वस्तुतः यह उनका ही स्वरूप है। क्योंकि धाम में धामी का निवास होता है। एक दिन हमें धाम धामी से अवश्य मिलायेगा इस दृढ़ विश्वास के साथ बारम्बार धाम में आकर साधना करने से विशेष लाभ होगा।
Sadhan Sadhya - Hindi - Guru Poornima 2024प्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
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श्री राधाकृष्ण भक्ति के मूर्तिमान स्वरूप, भक्तियोगरसावातर, समन्वयवादी जगद्गुरु
श्री कृपालु जी महाराज के पाद-पद्मों में कोटि-कोटि प्रणाम!
गुरु निष्ठा, गुरु भक्ति, गुरु सेवा की ओर प्रेरित करने वाला गुरु पूर्णिमा का पर्व सर्वश्रेष्ठ पर्व है। किसी वास्तविक गुरु के मार्गदर्शन में साधना करना, भक्ति करना एवं उनके चरणों में मन-बुद्धि का पूर्ण समर्पण करना ही मानव-देह की सफलता है।
आज हमारे देश में अनेकों दम्भी, पाखण्डी लोग सिर मुड़वा कर, जटा रखकर, कंठी धारण कर, तिलक लगाकर, गेरुए वस्त्र धारण कर गुरु बन बैठे हैं और अपने अटपटे ज्ञान एवं मनगढ़ंत तर्कों से जनता को उलझाये रखते हैं। जिससे लोग वास्तविक गुरु के सान्निध्य से भी वंचित रह जाते हैं।
इस साधन साध्य अंक में, वेदाें-शास्त्रों द्वारा प्रमाणित जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचनों के अंशों द्वारा यह बताया गया कि साधकों को नकली गुरुओं से कैसे सावधान रहना है एवं कुसंग से बचकर कैसे अपनी साधना को सुरक्षित रखना है।
साधना में समय स्थान आदि का कोई प्रतिबन्ध नहीं है फिर भी गुरु धाम का विशेष महत्त्व है। यहाँ हमारा मन भगवान् में सरलता से लग जाता है। यहाँ का कण-कण दिव्य चिन्मय है। श्री गुरुवर की अनन्त स्मृतियाँ समाहित हैं वस्तुतः यह उनका ही स्वरूप है। क्योंकि धाम में धामी का निवास होता है। एक दिन हमें धाम धामी से अवश्य मिलायेगा इस दृढ़ विश्वास के साथ बारम्बार धाम में आकर साधना करने से विशेष लाभ होगा।
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | सिद्धांत |
फॉर्मेट | पेपरबैक |
लेखक | राधा गोविंद समिति |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
आकार | 27सेमी X 21.5सेमी X 0.4सेमी |
वजन (ग्राम) | 180 |