ब्रजरस से ओतप्रोत जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज का साहित्य आध्यात्मिक जगत् की एक अमूल्य निधि है। जो भी साहित्य उनके द्वारा प्रकट किया गया है वह अनूठा ही है। उसमें अलंकार सौष्ठव, माधुर्य और सौरस्य का ऐसा सामंजस्य है कि पत्थर से पत्थर हृदय भी पिघलकर श्री श्यामा-श्याम के दिव्य प्रेम रस में निमज्जित हो जाता है एवं मन-मयूर श्याम घन स्वरूप घनश्याम-मिलन के लिए विभोर हो नृत्य करने लगता है।
उपर्युक्त साहित्य की प्रमुख विशेषता यह है कि सम्पूर्ण पदावलि संगीतात्मक है। इसको पढ़ने के बाद दिव्य प्रेम रस का समुद्र स्वाभाविक रूप से उमड़ पड़ता है, हृदय प्रेम रस में सराबोर हो जाता है एवं श्यामा-श्याम-चरणों में सहज अनुराग हो जाता है।
संकीर्तन सरगम की साधक बहुत दिन से प्रतीक्षा कर रहे थे। यह पुस्तक नि:सन्देह भक्तियोग की क्रियात्मक साधना में अत्यधिक सहायक सिद्ध होगी क्योंकि गायन के साथ साथ किसी वाद्य-विशेष का उपयोग हृदय तंत्री के तारों को सुगमता से झंकृत कर, श्यामा-श्याम मिलन की लालसा बढ़ाता है; हृदय सरलता से द्रवित हो जाता है। यही भक्ति का आधार है। अत: साधकों को साधना में अवश्य अवश्य लाभ होगा।
इसी उद्देश्य से यह पुस्तक प्रकाशित की जा रही है।
Sankirtan Sargam - Hindiप्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
---|
ब्रजरस से ओतप्रोत जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज का साहित्य आध्यात्मिक जगत् की एक अमूल्य निधि है। जो भी साहित्य उनके द्वारा प्रकट किया गया है वह अनूठा ही है। उसमें अलंकार सौष्ठव, माधुर्य और सौरस्य का ऐसा सामंजस्य है कि पत्थर से पत्थर हृदय भी पिघलकर श्री श्यामा-श्याम के दिव्य प्रेम रस में निमज्जित हो जाता है एवं मन-मयूर श्याम घन स्वरूप घनश्याम-मिलन के लिए विभोर हो नृत्य करने लगता है।
उपर्युक्त साहित्य की प्रमुख विशेषता यह है कि सम्पूर्ण पदावलि संगीतात्मक है। इसको पढ़ने के बाद दिव्य प्रेम रस का समुद्र स्वाभाविक रूप से उमड़ पड़ता है, हृदय प्रेम रस में सराबोर हो जाता है एवं श्यामा-श्याम-चरणों में सहज अनुराग हो जाता है।
संकीर्तन सरगम की साधक बहुत दिन से प्रतीक्षा कर रहे थे। यह पुस्तक नि:सन्देह भक्तियोग की क्रियात्मक साधना में अत्यधिक सहायक सिद्ध होगी क्योंकि गायन के साथ साथ किसी वाद्य-विशेष का उपयोग हृदय तंत्री के तारों को सुगमता से झंकृत कर, श्यामा-श्याम मिलन की लालसा बढ़ाता है; हृदय सरलता से द्रवित हो जाता है। यही भक्ति का आधार है। अत: साधकों को साधना में अवश्य अवश्य लाभ होगा।
इसी उद्देश्य से यह पुस्तक प्रकाशित की जा रही है।
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | संकीर्तन |
विषयवस्तु | भक्ति गीत और भजन, तत्वज्ञान |
फॉर्मेट | हार्डकवर |
वर्गीकरण | संकीर्तन |
लेखक | जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
पृष्ठों की संख्या | 252 |
वजन (ग्राम) | 397 |
आकार | 15 सेमी X 23 सेमी X 2 सेमी |
आई.एस.बी.एन. | 9789380661315 |