बरसाना में राजा वृषभानु के दरबार में उनके दिव्य प्राकट्य से लेकर कीर्ति मैयां से अति मधुर एवं भोली शिकायतों तक, जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने श्री राधा रानी के बालस्वरूप का अत्यंत सुन्दर वर्णन किया है। ये भोरी भारी नन्हीं सी राधिका, जो तोतली भाषा में अपनी मैया से हठ कर रहीं हैं एवं घुटनों के बल चल रहीं हैं, वही हैं जो स्वयं सौंदर्य का आधार और परमानंद की दात्री हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण को भी रस प्रदान करतीं हैं। भक्ति के इस महान संग्रह / महान निधि, 'प्रेम रस मदिरा' का यह आठवां अध्याय है। 'प्रेम रस मदिरा' के दिव्य अद्वितीय 1008 भक्ति से परिपूर्ण पद वेदों, पुराणों, उपनिषदों आदि के सिद्धांतों पर आधारित हैं।