71 पंक्तियों के इस संकीर्तन में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने सम्पूर्ण भक्ति सम्बन्धी तत्त्वज्ञान इतनी सरलता, सरसता और सुन्दरता से भर दिया है कि साधारण से साधारण बुद्धि वाला भी आसानी से समझ सकता है। एक एक पंक्ति में शास्त्रों वेदों का सार समाहित है। पढ़ने के साथ साथ इसकी धुन इतनी आकर्षक है कि वह हृदय को बरबस भक्ति रस से भर देती है।
साधकों के लाभ हेतु इसकी स्वर लिपी भी लिखी जा रही है।
Sumiran-Hindiप्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
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71 पंक्तियों के इस संकीर्तन में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने सम्पूर्ण भक्ति सम्बन्धी तत्त्वज्ञान इतनी सरलता, सरसता और सुन्दरता से भर दिया है कि साधारण से साधारण बुद्धि वाला भी आसानी से समझ सकता है। एक एक पंक्ति में शास्त्रों वेदों का सार समाहित है। पढ़ने के साथ साथ इसकी धुन इतनी आकर्षक है कि वह हृदय को बरबस भक्ति रस से भर देती है।
साधकों के लाभ हेतु इसकी स्वर लिपी भी लिखी जा रही है।
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | संकीर्तन |
विषयवस्तु | छोटी किताब, भक्ति गीत और भजन, तत्वज्ञान |
फॉर्मेट | पेपरबैक |
वर्गीकरण | संकीर्तन |
लेखक | जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
आई.एस.बी.एन. | 9789390373123 |