सभी पाठकों को गुरु पूर्णिमा की बहुत बहुत बधाई
मानुष तन सद्गुरु मिलन, जग महँ दुर्लभ दोय।
इन दोउन लहि भजन करु, जनम सफल तब होय।
मानव देह देव दुर्लभ है, उसमें भी किसी वास्तविक महापुरुष अर्थात् श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष का मिल जाना अत्यधिक दुर्लभ है। अकारण-करुण श्री कृष्ण की असीम अनुकम्पा के परिणाम स्वरूप ये दोनों ही हमें प्राप्त हैं अत:शीघ्रातिशीघ्र अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करना है। एक क्षण भी व्यर्थ न जाय। सांसारिक वासनायें छोड़कर गुरु के सान्निध्य में गुरु निर्देशानुसार उनके द्वारा बताई हुई साधना करना है। नामापराधों से बचते हुये बड़ी सावधानी के साथ गुरु आज्ञा पालन करने से ही श्यामा श्याम की प्राप्ति होगी। अत: प्रत्येक साधक को अपनी बुद्धि गुरु की बुद्धि में जोड़ देनी चाहिये। पुन: गुरु से तादात्म्य प्राप्त अपनी उसी बुद्धि द्वारा मन को नियंत्रित करना चाहिये। प्रत्येक क्षण गुरु की रुचि में रुचि रखने का अभ्यास करना चाहिये। यहाँ तक की ब्रह्मलोक पर्यन्त के ऐश्वर्य भोग,मुक्ति की कामना एवं बैकुण्ठ लोक की कामना का परित्याग करके गुरु को हरि का ही स्वरूप समझते हुये सदैव गुरु के अनुकूल ही चिन्तन करना है।
उपर्युक्त शास्त्रोक्त सिद्धान्तों का परिपालन करने का व्रत लेकर ही हम गुरु पूर्णिमा महोत्सव यथार्थ रूप में मना सकेंगे। गुरु सेवार्थ तन, मन, धन सहर्ष समर्पित हो इस आशा के साथ....
Adhyatma Sandesh - Guru Poornima 2006प्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
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सभी पाठकों को गुरु पूर्णिमा की बहुत बहुत बधाई
मानुष तन सद्गुरु मिलन, जग महँ दुर्लभ दोय।
इन दोउन लहि भजन करु, जनम सफल तब होय।
मानव देह देव दुर्लभ है, उसमें भी किसी वास्तविक महापुरुष अर्थात् श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष का मिल जाना अत्यधिक दुर्लभ है। अकारण-करुण श्री कृष्ण की असीम अनुकम्पा के परिणाम स्वरूप ये दोनों ही हमें प्राप्त हैं अत:शीघ्रातिशीघ्र अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करना है। एक क्षण भी व्यर्थ न जाय। सांसारिक वासनायें छोड़कर गुरु के सान्निध्य में गुरु निर्देशानुसार उनके द्वारा बताई हुई साधना करना है। नामापराधों से बचते हुये बड़ी सावधानी के साथ गुरु आज्ञा पालन करने से ही श्यामा श्याम की प्राप्ति होगी। अत: प्रत्येक साधक को अपनी बुद्धि गुरु की बुद्धि में जोड़ देनी चाहिये। पुन: गुरु से तादात्म्य प्राप्त अपनी उसी बुद्धि द्वारा मन को नियंत्रित करना चाहिये। प्रत्येक क्षण गुरु की रुचि में रुचि रखने का अभ्यास करना चाहिये। यहाँ तक की ब्रह्मलोक पर्यन्त के ऐश्वर्य भोग,मुक्ति की कामना एवं बैकुण्ठ लोक की कामना का परित्याग करके गुरु को हरि का ही स्वरूप समझते हुये सदैव गुरु के अनुकूल ही चिन्तन करना है।
उपर्युक्त शास्त्रोक्त सिद्धान्तों का परिपालन करने का व्रत लेकर ही हम गुरु पूर्णिमा महोत्सव यथार्थ रूप में मना सकेंगे। गुरु सेवार्थ तन, मन, धन सहर्ष समर्पित हो इस आशा के साथ....
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | आध्यात्मिक पत्रिका |
फॉर्मेट | पत्रिका |
लेखक | परम पूज्या डॉ श्यामा त्रिपाठी |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
आकार | 21.5 सेमी X 28 सेमी X 0.4 सेमी |