वेद से लेकर रामायण तक सभी ग्रन्थ और सभी सम्प्रदायों के सभी सन्त कहते हैं कि साधक के लिए सर्वप्रथम श्रद्धा परमावश्यक है। बिना श्रद्धा के भगवान् स्वयं भी यदि गुरु रूप में हमारा मार्ग दर्शन करें तो भी हमारा कल्याण असम्भव है।
यद्यपि मानवदेह एवं सद्गुरु का मिलना परम सौभाग्य एवं भगवान् की सबसे बड़ी तथा अन्तिम कृपा है लेकिन इनसे भी दुर्लभ एक तीसरी चीज है श्रद्धा, उसी में गड़बड़ हुई है अनादिकाल से अब तक। अनन्त बार हमको भगवान् मिले हैं, संतों की कौन कहे, किन्तु श्रद्धा न होने के कारण हमें कोई लाभ नहीं हुआ।
अत: यह समझना परमावश्यक है कि श्रद्धा क्या है और अगर श्रद्धा नहीं है तो कैसे उत्पन्न हो। प्रस्तुत पुस्तक में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचनों के अंश संकलित किये गये हैं जो इस विषय पर प्रकाश डालते हैं।
Shraddha - Hindiप्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
---|
वेद से लेकर रामायण तक सभी ग्रन्थ और सभी सम्प्रदायों के सभी सन्त कहते हैं कि साधक के लिए सर्वप्रथम श्रद्धा परमावश्यक है। बिना श्रद्धा के भगवान् स्वयं भी यदि गुरु रूप में हमारा मार्ग दर्शन करें तो भी हमारा कल्याण असम्भव है।
यद्यपि मानवदेह एवं सद्गुरु का मिलना परम सौभाग्य एवं भगवान् की सबसे बड़ी तथा अन्तिम कृपा है लेकिन इनसे भी दुर्लभ एक तीसरी चीज है श्रद्धा, उसी में गड़बड़ हुई है अनादिकाल से अब तक। अनन्त बार हमको भगवान् मिले हैं, संतों की कौन कहे, किन्तु श्रद्धा न होने के कारण हमें कोई लाभ नहीं हुआ।
अत: यह समझना परमावश्यक है कि श्रद्धा क्या है और अगर श्रद्धा नहीं है तो कैसे उत्पन्न हो। प्रस्तुत पुस्तक में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचनों के अंश संकलित किये गये हैं जो इस विषय पर प्रकाश डालते हैं।
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | सिद्धांत |
विषयवस्तु | छोटी किताब, तत्वज्ञान |
फॉर्मेट | पेपरबैक |
वर्गीकरण | संकलन |
लेखक | जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
पृष्ठों की संख्या | 62 |
वजन (ग्राम) | 66 |
आकार | 12.5 सेमी X 18 सेमी X 0.5 सेमी |
आई.एस.बी.एन. | 9789380661247 |