जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के विलक्षण व्यक्तित्व से आज सम्पूर्ण विश्व प्रभावित है। ये समस्त वेदों शास्त्रों, पुराणों एवं पाश्चात्य दार्शनिकों के परस्पर विरोधी मतों का समन्वय करते हैं। सभी आचार्यों का सम्मान करते हुये एकमात्र भक्तियोग का प्राधान्य सिद्ध करते हैं।
वे सम्प्रदायवाद, शिष्य परम्परा (कान फूँकना आदि) आदि गुरुडम से दूर रहते हैं। किन्तु आश्चर्य है कान नहीं फूँकते और शिष्य भी नहीं बनाते फिर भी प्रत्येक जाति सम्प्रदाय, प्रत्येक धर्म के लाखों लोग उनके मार्ग दर्शन में साधना कर रहे हैं। उनकी संस्थाओं में विश्व बन्धुत्व का मूर्तिमान स्वरूप देखने को मिलता है जहाँ सभी जाति, सम्प्रदाय और वर्गों के साधक सेवारत हैं इनके अनुसार विश्वबंधुत्व ही आज की प्रमुख माँग है। वह केवल हिन्दू वैदिक फिलॉसफी से ही हो सकता है। ‘य आत्मनि तिष्ठति’ इस वैदिक सिद्धान्त के अनुसार सभी जीवों में भगवान् का निवास है। यदि यह बात मानवमात्र स्वीकार कर ले, तो समस्त झगड़े समाप्त हो जायँ और विश्व-शान्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाय।
हिन्दू वैदिक फिलॉसफी द्वारा विश्व शान्ति किस प्रकार स्थापित हो सकती है। इस सन्दर्भ में विश्व-शान्ति के हेतु जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के विचारों को प्रस्तुत पुस्तक में प्रकाशित किया जा रहा है।
Vishva Shanti - Hindiप्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
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जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के विलक्षण व्यक्तित्व से आज सम्पूर्ण विश्व प्रभावित है। ये समस्त वेदों शास्त्रों, पुराणों एवं पाश्चात्य दार्शनिकों के परस्पर विरोधी मतों का समन्वय करते हैं। सभी आचार्यों का सम्मान करते हुये एकमात्र भक्तियोग का प्राधान्य सिद्ध करते हैं।
वे सम्प्रदायवाद, शिष्य परम्परा (कान फूँकना आदि) आदि गुरुडम से दूर रहते हैं। किन्तु आश्चर्य है कान नहीं फूँकते और शिष्य भी नहीं बनाते फिर भी प्रत्येक जाति सम्प्रदाय, प्रत्येक धर्म के लाखों लोग उनके मार्ग दर्शन में साधना कर रहे हैं। उनकी संस्थाओं में विश्व बन्धुत्व का मूर्तिमान स्वरूप देखने को मिलता है जहाँ सभी जाति, सम्प्रदाय और वर्गों के साधक सेवारत हैं इनके अनुसार विश्वबंधुत्व ही आज की प्रमुख माँग है। वह केवल हिन्दू वैदिक फिलॉसफी से ही हो सकता है। ‘य आत्मनि तिष्ठति’ इस वैदिक सिद्धान्त के अनुसार सभी जीवों में भगवान् का निवास है। यदि यह बात मानवमात्र स्वीकार कर ले, तो समस्त झगड़े समाप्त हो जायँ और विश्व-शान्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाय।
हिन्दू वैदिक फिलॉसफी द्वारा विश्व शान्ति किस प्रकार स्थापित हो सकती है। इस सन्दर्भ में विश्व-शान्ति के हेतु जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के विचारों को प्रस्तुत पुस्तक में प्रकाशित किया जा रहा है।
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | सिद्धांत |
विषयवस्तु | छोटी किताब, तत्वज्ञान |
फॉर्मेट | पेपरबैक |
वर्गीकरण | संकलन |
लेखक | जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
पृष्ठों की संख्या | 69 |
वजन (ग्राम) | 106 |
आकार | 14 सेमी X 22 सेमी X 0.5 सेमी |
आई.एस.बी.एन. | 9789380661117 |