कुछ लोग पूछते हैं कि भगवान ने जब संसार बनाया, तो एक को मनुष्य बना दिया, एक को गधा बना दिया, एक को कुत्ता बना दिया। ऐसा क्यों? कोई जलचर, कोई भूचर, कोई खेचर, कोई स्वेदज, कोई अण्डज, कोई उद्भिज, कोई जरायुज ये तमाम प्रकार का सृष्टि का वैषम्य चौरासी लाख योनियों का, ऐसा क्यों? उस जीव ने क्या गुनाह किया था अभी तो सृष्टि शुरू हुई है। हाँ, वेद कह रहा है –
सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत्। दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्ष मथोस्वः। (ऋग्वेद, नारायणोप. ५-७)
प्रजाःसृज यथापूर्वं याश्च मय्यनुशेरते । (भाग. ३-९-४३)
ससर्जेदं स पूर्ववत् (भाग. २-९-३८)
जैसे सृष्टि पहले थी वैसे ही प्रकट कर दिया है भगवान् ने। कुछ बनाया वनाया नहीं ।
वैषम्यनैर्घृण्ये न सापेक्षत्वात्तथा हि दर्शयति ॥ (ब्र.सू. २-१-३४)
न कर्माविभागादिति चेन्नानादित्वात् ॥ (ब्र.सू. २-१-३५)
अर्थात् अनादिकाल के हमारे कर्मों के द्वारा महाप्रलय में हमारी जो स्थिति थी वैसे ही सृष्टि प्रकट कर दिया, कुछ बनाई वनाई नहीं भगवान् ने, अपनी जेब से। आप लोग क्रिकेट देखते होंगे। हाँ। पाँच दिन का होता है न टैस्ट मैच। हाँ होता है। तो एक दिन, पहले दिन मान लो दो आउट हो गये और एक खिलाड़ी ने नाइन्टी नाइन रन बनाया और टाइम हो गया शाम का एम्पायर ने सीटी बजा दी, छुट्टी। तो दूसरे दिन जैसे वो दो आउट हो गये थे, वे आउट माने जायेंगे। और उसने नाइन्टी नाइन रन बनाया था वहीं वो खड़ा होकर आगे बनायेगा। यानी जहाँ समाप्त हुआ था पहले दिन वहीं से शुरू होगा। ऐसे ही ये सृष्टि है। जो लोग पुनर्जन्म नहीं मानते। उनसे पूछो कि तुम्हारे भगवान् ने ये घपड़ सपड़ क्यों किया है, अलग-अलग। हमारे भगवान् ने तो कुछ बनाया ही नहीं। उन्होंने तो प्रकट किया है- 'यथापूर्वम्'। इसलिये न वैषम्य है न 'नैर्घृण्य' है। निर्दयी नहीं है भगवान्। वो तो
समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः । (गीता ९-२९)
वो समदर्शी है। तो वो भगवान् या ब्रह्म या परमात्मा अनेक रूपधारी हैं वो स्वयं भी सत् चित् आनन्द स्वरूप है, दूसरे को भी अपने समान बना देता है। लेकिन जीव की पर्सनैलिटी सदा रहती है। जीव ब्रह्म नहीं बन सकता। संसार का प्राकट्य करना, संसार का रक्षण करना, प्रलय करना ये तमाम कार्य भगवान् स्वयं करते हैं। हाँ अपना अपना ज्ञान, अपना आनन्द ये सब कुछ दे देते हैं।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा रचित पुस्तक “मैं कौन? मेरा कौन?” का एक अंश।
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